Tuesday 26 February 2019


Karma and Destiny

Thoughts, words and actions, these three are the realms on which a deed or a karma is executed. Our sensory apparatus has a direct effect on our thought process as it helps us to build our cultural and sacramental values. Some values are imbibed by seeing, some by touching, some by hearing, some by sniffing and some by tasting. In simpler words, our sense organs contribute to the virtue of our thoughts.

We speak what we think and at most times, we culminate into doing what we speak. What we repeatedly do in these three realms of karmas, manifests itself as our karmic tendency. This karmic tendency is instrumental in shaping our thoughts, speech and deeds. Our karmas get more deeply rooted on the same ground with time. This evolves into karmic circle. Our karmas are like those seeds which have not germinated yet and lie inactive, hidden in the soil of our life. This condition continues until they get a congenial environment to sprout. In the same way, the consequences of our karmas affect us. We blossom with good karmas and wither with bad karmas.
A person’s destiny is the direct outcome of his karmas. Destiny is the reward of our own karmas, depending on their nature. Whatever happens during our life cycle, between our birth and death, like our gender, country, society, family, parents, siblings, spouse, even our harmony with these different relations and lastly, when and how we take our last breath, everything is decided by our karmas and their connection with the karmas of the people related to us. Do you ever wonder why you were born to your parents and not your neighbours or the parents of your friend? This is called karmic-relation, when our karmas relate us to someone and we account for each other’s lives.

No one else but we ourselves are responsible for our environment and destiny. It proclaims that we steer our own lives. A dogged person can alter his destiny and stay blissed in all circumstances. He may get the support and bosom of his people around him but ultimately, it’s his own will that keeps him going. He himself is the root cause of his joys and sorrow. Most people never get to know their real-self and stay ignorant towards the actual purpose of their existence. Consequentially, during the hour of grief, we are repeatedly tormented by certain debilitating questions like- Why is this happening to me? Who is controlling my life?

We find ourselves struggling with such unanswered questions when we have an inadequate or scarce knowledge about ourselves. Insufficient knowledge is even more dangerous as it will only add to our woes and distract us from the true purpose of our life. The day we gauze the real worth of life, all the questions get answered. The journey towards discovering self is of paramount importance. That’s where we have to seek the guidance of a Guru.

A true guru never leaves his disciples on his mercy or dependency, but inspires and enables them to embark on the journey to self-discovery alone. At first, one contributes to his karmas unknowingly and unintentionally. This a dormant stage, a kind of trance where he acts unconsciously. Then a moment comes, when he awakes to the reality and starts creating his own destiny. This is the moment of true enlightenment. When the person discovers the truth completely that he has always been the master of his destiny. Such a person gets answers to the questions which keep troubling others all through their lives. Who am I? Who is my controller? How am I related to that power controlling or governing the universe? Are we separate or a whole? How does the karmic cycle work? How do the karmic seeds come into existence? How do our karmas result? How do our karmas move? What is karmic tendency? How can we reform our karmas? How do our karmas kept lying heaped like seeds under the soil of our lives waiting for the right time to germinate? How could we reap the fruits of our karmas?

Guru helps us to search ourselves for all these questions. We carry within ourselves an eternal source of power and energy. Guru awakens us and initiates the process of self-discovery which culminates into true-knowledge. This enlightens our inner-self with the enhancement of the existing power and energy. Then the moment of real enlightenment arrives.

Now the question is how to comprehend the importance of this journey and how to embark on it. This journey is pleasant from beginning till end. Once on destination, we discover that there is no stopping ….the journey is ever going. Nonetheless, this is a mirthful and blissful journey. What we experience in the company of a true guru is the power of prayer, faith and devotion.

Our yearning to know the true meaning of life shows us a way to reach a guru. He emerges as an answer to our candid curiosity about life and its unanswered questions. Like we require a true guru to tread on this journey, he also waits for a true disciple and emerges when he gets one. Having the blessings of a guru in different dimensions of one’s life is just a step towards their bonding. It grows stronger with the evolution of life.

So our life is based on the nature of our karmas. During this materialistic journey, our thoughts and ideas are affected and controlled by our sensory values. Thoughts define speech and thoughts and speech together define deeds. These are called karmas which further define and shape our destiny. As our destiny is a direct result of our karmas, a change in the nature of karmas is sure to bring a vital change in our destiny too. We can, in fact, reshape our destiny with the tools of our karmas.

K.B.Vyas

Friday 30 November 2018


                                 सपनों के सुलझे रहस्य 
              सपनों का संसार बहुत रोचक है | यह कोतुहल पैदा करता है की आखिर सपने हैं क्या ? कभी यह उम्मीद और जोश से भरे या फिर कभी डर से भी परिपूर्ण होते है | वैसे सपनों का सिलसिले वार आना नहीं होता | अभी एक पल में हम आसमान में उड़ रहे होते हैं की दूसरे ही पल हम पानी के बीच में होते हैं | कोई ओर छोर समझ में नहीं आता है और तो और हम अपने सपने याद भी नहीं रखते | पूरी जिन्दगी में हमें आठ दस सपने ही हैं जो पूरे के पूरे याद रहते है और अधिकतर वो, जो हाल ही के दिनों में आए हैं | जहां तक सपनों के सच होने की बात है वो तो केवल दो चार ही होते हैं जो हूबहू सच हो जाएं , लेकिन अगर दो चार सपने भी सच हो जाते हैं तो कैसे हो जाते हैं ? भविष्य की पूर्व जानकारी मिल जाती है तो कैसे ? क्या आने वाले समय में क्या होगा ये मालूम चल जाता है ? कुल मिला कर सपनों की दुनिया पूरी तरह से रहस्य की तरह है और इसलिए इसे सुलझाना बहुत रोमांचकारी है |

 एक बात जो मुझे समझ में आई कि जैसे जैसे हम अपने भीतर के मन को स्वच्छ करते चले जाते हैं हमारे सपने भी उसी हिसाब से स्वच्छ होते जाते हैं | मन को स्वच्छ करते रहने पर एक स्थिती ऐसी आती है जब हम कोई भी सपना नहीं देखते | यह स्थिती आती है, लेकिन बहुत कम लोगों में आती है | ऐसा कहते है की उस समय, हम एक तरह से जागते हुए भी सपने देखने लगते हैं | ये खुली आँखों के सपने होते हैं और वो भी इस तरह से कि सभी का निस्वार्थ रूप से, पूर्ण विवेक के साथ भला चाहने लगते हैं | उस स्थिती को भी सपना ही कहा जाता है क्यों कि तब हकीकत और सपने में कोई फर्क नहीं रह जाता, हम उसे होती हुई घटना कहें या सपना कोई फर्क नहीं पड़ता और तब हमारे सोने और जागने में कोई अंतर नहीं रहता |

 लेकिन सपनों को जानने से पहले हमें थोड़ा सा नींद के बारे में जानना पडेगा | हमें नींद क्यों आती है ? हमारी नींद का कारण क्या है ? वैज्ञानिक कहते हैं की हम काम करके थक जाते हैं तो हमें आराम की जरूरत होती है और हम सो जाते हैं | नींद में जब हम सोते हैं तो शिथिल पड़ जाते हैं, हमें होश ही नहीं रहता कि हम कौन हैं, क्या हैं ? हमारी बुद्धि शिथिल पड़ जाती है मगर हमारा मन जागता रहता है | यह मन तब पूर्णतया अपने हिसाब से चलता है और मजे की बात है कि सिलसिलेवार भी नहीं चलता | तो उस समय मन जो देखना चाहता है वो देख लेता है क्यों कि बुद्धि उस समय विकल हो जाती है |

एक मनुष्य अपने जीवन में एक तिहाई जीवन सो के बिताता है | बचपन में मनुष्य ज्यादा सोता है, करीब १८ घंटे तक सोता है | यह समय उसके विकास में सहायक होता है | फिर ज्यों ज्यों वो बड़ा होता जाता है उसकी नींद कम होने लगती है | वैज्ञानिकों का कहना है की एक वयस्क मनुष्य को ७-८ घंटे की नींद लेना आवश्यक है | शेष १५-१६ घंटे आदमी काम करता है | 

सही नींद का आना असल मायने में शरीर के थकने की वजह से होता है और शरीर थकता कब है ? शरीर मानसिक तौर पर थकता है इसलिए नींद हर मनुष्य को अलग अलग समय सीमा तक आती है | वैसे कहते हैं की जो मनुष्य प्रपंच नहीं करता उसे दो मिनट में कहीं भी नींद आ जाती है | इसे आजकल नैनो स्लीप का नाम दिया गया है | इस दो मिनट की नींद के बाद वो इंसान तरो ताज़ा हो जाता है |

तो कहने का मतलब है की एक स्थिती ऐसी आती है की उसे कुछ आराम चाहिए होता है और मनुष्य नींद ले लेता है | यह  स्थिति हर मनुष्य के साथ अलग अलग होती है कुछ लोग २४ घंटे में से पांच छः घंटा सो जाते है, कुछ तीन चार घंटा सो जाते है और कुछ लोग तो घंटा, डेढ़ घंटा ही सोते है   | ऐसा कम इसलिए होता है कि बहुत कम लोग नींद के आयाम के प्रति जागृत होते है | यदि हम सभी नींद के प्रति जागृत हो जाएं तो हम सभी ऐसे हो सकते है |

वैसे सामान्य अवस्था में नींद जब लेते हैं हम तो हमें सपने आते हैं | सपनों का अक्सर कोई सिर पैर नहीं होता | जागने पर हमें याद भी नहीं रहता की हमने क्या सपना देखा | कई बार हमें हमारी याददाश्त पर ज़ोर देना पड़ता है की हमने क्या सपना देखा | बचपन से हम सपने देखते आ रहे हैं और दो चार सपने हम ऐसे देख लेते हैं जो सच हो जाते हैं और यह बड़ी हैरान कर देने वाली बात है | कुछ  दिन पहले किसी अपने की मृत्यु के सपने देख लेना , परिवार में वंश वृद्धि के सपने देख लेना , अपनी तरक्की के सपने या किसी क्षेत्र में स्वयं के या किसी अपने के चयन हो जाने के सपने देख लेना यानी ऐसे सपने जो सच हो जाते हैं उन्हें देख लेना | वो सच हो जाते हैं और हम उन पर आश्चर्य करते रह जाते हैं की ये क्या हुआ और कैसे हुआ ?

यही वो प्रश्न हैं की जिनका उत्तर ढूँढना मेरे मस्तिष्क में आया | तब मैंने सपनों के बारे में विभिन्न लेखों को पढ़ा | फ्रायड को पढ़ा | चार्ल्स को पढ़ा | आचार्य श्री राम शर्मा को पढ़ा | फिर मुझे लगा कि विभिन्न धर्म भी तो हैं जो सपनों के बारे में बताते हैं ,तो मैंने उन्हें पढ़ा | मैंने हिन्दू धर्म में सपनों को पढ़ा, बुद्ध , महावीर , गुरु नानक , ईसा मसीह , मोहम्मद साहब में मैंने सपनों को पढ़ा | मैंने जरथ्रुस्त्र में सपनों को पढ़ा | मैंने जितने सपनों पर वीडियो हो सकते थे, उन्हें देखा | मैंने जितने नोबेल प्राइज जीते है उनमें से कितने लोग हैं जिन्होंने नोबेल प्राइज जीतने के पीछे अपने सपनों को श्रेय दिया है, ये जाना | मैंने रामानुजन को पढ़ा जो केवल ३३ वर्ष तक जीवित रहे और जिनके सपने में गणित के सूत्र आते थे और इनका कहना है कि इनकी कुल देवी इन्हें सपने में आ कर गणित के सूत्र बताती थी और इन्हें रायल फेलोशिप मिली हुई थी | मुझे ऐसा लगता है की मैंने सपनों को लेकर तमाम दुनिया की किताबों को छान लिया मगर ......... ? रहस्य रहस्य ही रहा, क्यों की मुझे अनुभव उस तरह का नहीं हुआ | जानकारी अवश्य हुई सपनों के बारे में और ये जानकारी जीवन में आगे आने वाले समय में सम्भव है कि मुझे अनुभव भी हो जाए | इस किताब में मैंने जो पढ़ा और और जो उसके बाद समझा है वो लिख दिया है | अब यात्रा इसके अनुभव की है | विभिन्न प्रकार से सो जाना और विभिन्न प्रकार की नींद लेना मनुष्य के अनुभव में आ जाए तो सपनों के सारे रहस्य सुलझ सकते हैं | 

के.बी व्यास 
( मेरी आने वाली पुस्तक "स्वप्न के सुलझे रहस्य" की भूमिका से उदृत )

Thursday 1 March 2018


कैसे हो !

इस छोटे से वाक्य को अगर मुस्कुरा के कहा जाए तो शुरूआती बात तो वैसे ही बन जाए | एक पूरे दिन में इन्सान न जाने कितने लोगों से मिलता है | उसमें से अधिकतर जो मिलते हैं वो न जाने किस दुनिया में खोए रहते हैं | किसी को अपने परिवार की समस्या, किसी को अपनी नौकरी या व्यवसाय की समस्या, किसी को अपना बुढ़ापा सामने देख कर घबराहट होती है, किसी को रोग की समस्या और उसके बीच चलती हुई जिंन्दगी | ऐसे में कोई मुस्कुरा के पूछने वाला मिल जाए कि – कैसे हो ? तो अचानक जुबान पे  जवाब आता है कि – ठीक हूँ | यहाँ मुस्कुरा के पूछने वाली बात बहुत महत्वपूर्ण है | जिन्दगी एक जिन्दगी से पूछती है वो भी उल्लासित हो कर, तो चाहे कितना ही अवसाद में डूबा हुआ हो वो व्यक्ति उसे उम्मीद की किरण नजर आती है और वो कह बैठता है – ठीक हूँ | यहाँ से बात धनात्मक दिशा में शुरू होती है | 


उम्मीद का साथ हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए और निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए | एक न एक दिन हम जो चाहते हैं वो हमे मिल के रहता है | कितने ही तूफ़ान आ जाएं, कितनी ही आंधियाँ चलें वो इन्सान अपने पथ से कभी नहीं डिगता जो उम्मीद को साथ रखे है | ये आंधियां, ये तूफ़ान परीक्षाएं है इन्सान के समक्ष और कुछ नहीं हैं | ये हमारे भीतर रह रहे सत्य को प्रबल करने का साहस देती हैं | हम आंतरिक धरातल पर ऊपर उठते हैं | 

तूफ़ान और आँधियों को  पार पाने के लिए हमें उम्मीद का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए | आँख से आंसू चाहे हजार गिरें मगर एक दिन आता है जब विजय उद् धोष  हमारा ही होता है और हम उस समय भी हम अहंकार को करीब नहीं लाते | जो इन्सान इस तरह का जीवन जीता है वो महा - सम्राट है | उसे जीवन का अंतरतम मालूम है और उसे यह भी मालूम है कि क्या कर के हम कहाँ पहुचेंगें |


 तो मुस्कुरा के अगर किसी से पूछा कि – कैसे हो ? यह अपने आप में एक परिवर्तन लाता है और सुखद परिवर्तन लाता है | यह परिवर्तन बहुत बड़ा भी हो सकता है, ये बहुत छोटा हो सकता है लेकिन धनात्मक होता है | धनात्मक परिवर्तन अपने और दूसरों के जीवन में आना प्रगति का सूचक है | कैसे हो – ये मुस्कुरा के पूछना और मुस्कुरा के पूछने के साथ साथ आँखों में सामने वाले मनुष्य के लिए असीम गहराई का भाव भी अगर हो तो कहना ही क्या | पूरा का पूरा सामने वाला मनुष्य , कहने वाले के साथ एकाकार हो जाता है | इस तरह से अगर हम हर एक से अगर मुस्कुरा के पूछते चले जाएं कि – कैसे हो, तो हम शुरूआती सफलता प्राप्त कर सकते है – ये निश्चित है |


के.बी.व्यास

Tuesday 5 December 2017

रिसर्च

अंग्रेजी का ये शब्द रिसर्च बड़ा मजेदार शब्द है | सर्च और रिसर्च दो शब्द हैं अंग्रेजी भाषा में | तो सर्च तो हो चुकी है अब हम रिसर्च कर रहे हैं और फिर से री –रिसर्च और फिर री री – रिसर्च करेंगे | याने घूमते रहेंगें एक ही धुरी पर और खोज खोज कर के वो ही चीज़े लाते रहेंगें, जो कभी किसी जमाने में, किसी युग में सभी के सामने आ चुकी हैं | फिर समय बदला, युग बदला और वो खोज धीरे धीरे भुला दी गई और अब उसे पुनः ज़िंदा करना होता है, इसलिए रिसर्च होती है |

यदि हम याद करें कि कौन कौन लोग हैं जो सदियों तक याद रखे जाते हैं | तो ऐसे में वो ही लोग आते हैं जिन्होंने धर्म रखा, जिन्होंने इसकी आधारशिलाएं रखी और आधारशिला तो हम कह रहे हैं, उन्होंने उन सिद्धांतों को सामने रखा जो उस समय के लोगों को मालूम ही नहीं था | हम इन्सान को याद तो करते हैं लेकिन उनका मूल उद्देश्य क्या था ये भूल जाते हैं | हम उनकी बातों को जो हमारे सामने अधूरी बन के आ रही हैं पूरा समझ कर अपना ध्येय मान लेते हैं | लोग तो याद रहते हैं मगर उनकी कही बात कहीं गुम हो जाती है, इसलिए बार बार रिसर्च करनी पड़ती है, पुनः खोज करनी पड़ती है, खोज कर सामने लाना पड़ता है | लोग इसीलिए कहते हैं जो कहा गया वो बिल्कुल नया है, जबकि उसका सिर्फ कहने का तरीका नया है मगर बात उसमें शाश्वत ही है | अहंकार इस मामले में बहुत अहम रोल अदा करता है | वो बात को सही रूप में आने से रोकता है जो कि एक आसुरी वृत्ति है |

अहंकार से निपटने के लिए मनुष्य गुरु करता है, लेकिन गुरु भी कई प्रकार के होते हैं | असली गुरु मनुष्य को उसके भीतर प्रवेश करने में मदद करता है | बाहरी दुनिया से भीतर की दुनिया में कदम रखवाने में मदद करता है | एक बार मनुष्य भीतर उतरा तो उसे सभी अपने लगने लगते हैं | उसमें ‘मैं’ और ‘तुम’ का भेद नहीं रहता | सभी ‘मैं’ हो जाता है, कोई भेद नहीं रहता |

इस दिशा में लोगों को जगाना सबसे बड़ा चैलेन्ज है | कुछ लोग हैं जो पूरे सोए हुए हैं, कुछ लोग हैं जो आधे सोए आधे जागे हुए हैं और बहुत कम ऐसे हैं जो पूर्णतया जाग गए हैं | रिसर्च आधे सोए आधे जागे लोगों के लिए है |

के.बी.व्यास

Friday 24 November 2017



नींद, कर्म और मन 


               हमें नींद क्यों आती है ? वैज्ञानिक कहते हैं कि जब शरीर काम करके थक जाता है तो हमें नींद आ जाती है | हम जब उठते हैं तो तरोताजा हो कर उठते हैं | जब जागते हैं तो हमारी बुद्धि हमें बताती रहती है कि ये नहीं करना, वो नहीं करना , इसे ऐसे नहीं करना, इसको ऐसे करना इत्यादि | सो जाने पर हमारी बुद्धि भी विकल हो जाती है | हमें पता ही नहीं चलता कि हमारी टांग कहाँ पर है और हमारे हाथ कहाँ पर हैं और हमारा शरीर कहाँ पर किस अवस्था में है | 



ऐसे समय में मन स्वतंत्र हो जाता है , वो जो देखना चाहता है वही देख लेता है | किसी की मार – पिटाई करनी हो तो मार – पीट के आ जाता है और किसी को प्यार वगैराह कुछ करना हो तो प्यार कर के आ जाता है | इसलिए जो बात जागने में संभव नहीं हो पाती वो बात सो जाने पर एक तरह से पूरी हो जाती है | यह एक तरह के सपने हैं | अगर किसी विषय के बारे में चिंता है मन में कि इसका क्या होगा, कैसे होगा तो हम नींद में भटकेंगे, हमें रास्ता नहीं मिलेगा, हमारी ट्रेन छूट जाएगी और अगर हम आनन्दित हैं किसी विषय को लेकर तो नींद में हम मित्रों की महफिल में बैठे हुए होंगे, परिवार में बेठे हुए होंगे, ठहाके लग रहे होंगे और आनन्द ही आनन्द होगा | ये सब मन के कारण होता है | 


                मन को हम जितना शुद्ध करेंगे उतना ही सो जाने पर हम शुद्ध चीज को देखेंगे | मन को शुद्ध कैसे करें ? तो यह जागने पर विचारों को शुद्ध करने से होगा | जब किसी व्यक्ति के बारे में कोई विचार उठे तो वो धनात्मक ही उठे | हमारे लिए लाख किसी व्यक्ति ने गलत काम किए हों लेकिन हमारे मन में उसके प्रति कोई गलत भाव न आए तो हमारे विचार भी सही होंगे | ये काम जरा कठिन है, मगर हम इस दिशा में प्रयास कर के सफलता प्राप्त कर सकते हैं | प्रार्थना को नियमित करना इसका सरल उपाय है | हमारे विचार ही हमारे बोल बनते हैं, और हमारे बोल ही हमारे कृत्य बनते हैं | ये तीनों चीजे विचार, बोल और कृत्य, हमारे कर्म कहलाते हैं | हमारे कर्मों को धनात्मक दिशा देना मन को शुद्ध करना है | मन को शुद्ध करने के बाद हम सपने भी शद्ध ही देखेंगे | वो सपने देखेंगे, जो समय से पहले ही देख लें और जो सच हो जाएं | ऐसा कैसे होता है कि हम वो सभी कुछ जो अभी तक नहीं हुआ स्पष्ट देख लेते हैं ? तो यह आगे की बात है और यह होना भी कोई अचरज की बात नहीं | प्रार्थना में चलते चलते एक बिंदु आता है जब यह सम्भव हो जाता है | हालांकि नींद भी एक अवस्था है, इससे आगे सुषुप्ति है और इससे आगे तुरीया की स्थिति है, ऐसा सनातन धर्म में कहा गया है |


              कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें नींद नहीं आती, वे सिर्फ आराम करते हैं और उनके आस पास उन्हें सब पता होता है कि कहाँ पर क्या हो रहा है | फिर उन्हें सपने भी नहीं आते | सपनों का नींद से ही सम्बन्ध है और नींद में जाने पर पूर्णतया मन का साम्राज्य चलता है | जो कभी सोया ही नहीं उस पर मन का साम्राज्य नहीं चलता | मन उनके अनुसार चलता है, वे मन के अनुसार नहीं चलते | वैसे मन के शुद्ध हो जाने पर हमारे विचार, हमारे बोल और हमारे कृत्य तीनों शुद्ध हो जाते हैं | हमें तब स्वप्न भी सुस्वप्न आते हैं, लेकिन पंहुचे हुए लोग कहते हैं कि – जब जाग रहे हैं तो भी ये सपना देख रहे हैं , असल में वे जागृति की बात कर रहे हैं | जो पूर्णतः जागृति की अवस्था में है उन्हें सपने नहीं आते और उनके कर्म भी जागृत होते हैं | 
 के.बी.व्यास